बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
अथवा
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त के अनुसार व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या कीजिए। मूलप्रवृत्ति से क्या तात्पर्य है? समझाइए।
अथवा
अहं रक्षात्मक प्रक्रम (Ego defense mechanism) व्यक्तित्व को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
अथवा
फ्रायड के अनुसार चिन्ता व्यक्तित्व पर किस प्रकार प्रभाव डालती है?
उत्तर -
व्यक्तित्व की गतिकी - फ्रायड के अनुसार मानव जीव एक जटिल तंत्र है, जिसमें शारीरिक ऊर्जा तथा मानसिक ऊर्जा दोनों ही होते हैं। इन दोनों तरह की ऊर्जाओं का स्पर्श बिन्दु उपाहं (id) होता है। फ्रायड ने इन ऊर्जाओं से सम्बन्धित कुछ ऐसे संप्रत्ययों का विकास किया है, जिनसे व्यक्तित्व की गत्यात्मक पहलुओं जैसे - मूलप्रवृत्ति, चिन्ता तथा मनोरचनाओं का वर्णन होता है-
1. मूलप्रवृत्ति - मूलप्रवृत्ति से फ्रायड का तात्पर्य वैसे जन्मजात शारीरिक उत्तेजना से होता है, जिसके द्वारा व्यक्ति के सभी तरह के व्यवहार निर्धारित किए जाते हैं। मूलप्रवृत्तियों को मूलतः दो भागों में बाँटा गया है- जीवन मूलप्रवृत्ति तथा मृत्युमूलप्रवृत्ति। .
जीवन मूलप्रवृत्ति, जिसे इरोस कहा जाता है, इसमें व्यक्ति के सभी तरह के रचनात्मक 'कार्यों, मानव वर्ग या जाति का प्रजनन भी शामिल है, जो नियंत्रित होता है।
मृत्यु मूलप्रवृत्ति या थैनायेस द्वारा व्यक्ति के सभी तरह के ध्वसात्मक कार्यों तथा आक्रमणकारी व्यवहारों का निर्धारण होता है।
सामान्य व्यक्तित्व में इन दोनों तरह की मूलप्रवृत्तियों में एक संतुलन पाया जाता है। इस संतुलन में प्रायः इरोस की सक्रियता थैनाटोस की सक्रियता से अधिक होती है।
2. चिन्ता - फ्रायड के अनुसार चिन्ता एक ऐसी भावात्मक एवं दुखद अवस्था होती है जो अहं को आलंबित खतरे से सतर्क करती है ताकि व्यक्ति वातावरण के साथ अनुकूली ढंग से व्यवहार कर सके। फ्रायड ने चिन्ता के तीन प्रकार बतलाये हैं
(i) वास्तविक चिन्ता - बाह्य वातावरण में व्याप्त वास्तविक खतरे के प्रति की गयी सांवेगिक अनुक्रिया को वास्तविक चिन्ता कहा जाता है। जैसे आग, साँप, भूकम्प से डरकर चिन्तित होना, वास्तविक चिन्ता का उदाहरण है।
(ii) तंत्रिकातापी चिन्ता - इस तरह की चिन्ता की उत्पत्ति उपाहं की इच्छाओं पर अहं की निर्भरता से होती है। इसमें व्यक्ति को यह आशंका उठती है कि अहं, उपाहं की इच्छाओं को खासकर यौन इच्छाओं तथा आक्रामक इच्छाओं को नियंत्रित करने में समर्थ रहेगा।
(iii) नैतिक चिन्ता - जब अहं को पराहं से दण्ड दिये जाने की धमकी मिलती है, तो इससे व्यक्ति में नैतिक चिन्ता उत्पन्न होती है। नैतिक चिन्ता की उत्पत्ति का कारण पराहं पर अहं की निर्भरता है। जब व्यक्ति उपाहं की अनैतिक विचारों एवं आवेगों को कार्य रूप दे देता है, तो ऐसी परिस्थिति में अहं को पराहं दण्ड देता है और उसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में दोष-भाव, शर्म एवं आत्म-दोष की भावना उत्पन्न हो जाती है।
3. अहं रक्षात्मक प्रक्रम - अहं रक्षात्मक प्रक्रम अहं को चिन्ताओं से बचा पाता है। रक्षात्मक प्रक्रमों का प्रयोग सभी व्यक्ति करते हैं। सभी रक्षात्मक प्रक्रम अचेतन स्तर पर कार्य करते हैं। अतः वे आत्म-भ्रामक होते हैं। रक्षात्मक प्रक्रम वास्तविकता के प्रत्यक्षण को विकृत कर देते हैं। प्रमुख रक्षात्मक प्रक्रम निम्नांकित हैं
(i) दमन - दमन एक ऐसा रक्षात्मक प्रक्रम है, जिसके द्वारा चिन्ता, तनाव, मानसिक संघर्ष उत्पन्न करने वाली असामाजिक एवं अनैतिक इच्छाओं को चेतना से हटाकर व्यक्ति अचेतन में कर देता है।
(ii) यौक्तिकीकरण - यह रक्षात्मक प्रक्रम "अंगूर खट्टे हैं" जैसी कहावत को चरितार्थ करता है। इसमें अयुक्तिसंगत अभिप्रेरकों एवं इच्छाओं से उत्पन्न मानसिक संघर्ष या तनाव का समाधान उन अभिप्रेरकों एवं इच्छाओं को युक्तिसंगत बनाकर अर्थात तर्क एवं विवेकपूर्ण व्याख्या कर किया जाता है।
(iii) प्रतिक्रिया निर्माण - इस रक्षात्मक प्रक्रम में व्यक्ति अपने अहं को किसी कष्टकर या अप्रिय इच्छा तथा प्रेरणा से ठीक उस इच्छा एवं प्रेरणा के विपरीत इच्छा या प्रेरणा विकसित कर बचाता है। जैसे- भ्रष्ट नेता द्वारा भ्रष्टाचार के विरोध में भाषण देना तथा प्रेम में असफल हो जाने पर अपनी प्रेमिका या प्रेमी से घृणा करना प्रतिक्रिया निर्माण के उदाहरण हैं।
(iv) प्रतिगमन - प्रतिगमन का शाब्दिक अर्थ 'पीछे की ओर हो जाना होता है। यह एक ऐसा रक्षात्मक प्रक्रम है, जिसमें तनाव या संघर्ष के समाधान के लिए व्यक्ति में बाल्यावस्था के व्यवहारों की ओर पलटने की प्रवृत्ति होती है। जैसे -
किसी मानसिक तनाव या संघर्ष के उत्पन्न हो जाने पर वयस्क व्यक्ति भी कभी-कभी बच्चों की तरह फूट-फूटकर रोने लगता है
(v) प्रक्षेपण - दूसरे लोगों या वातावरण के प्रति अपनी अमान्य प्रस्तुतियों, मनोवृत्तियों एवं व्यवहारों को अचेतन रूप से आरोपित करने की प्रक्रिया को प्रक्षेपण कहा जाता है। प्रायः देखा जाता है कि परीक्षा में फेल हो जाने पर छात्र इसका दोष स्वयं पर न लेकर कठिन प्रश्न के पूछे जाने, आदि बतलाकर फेलं हो जाने से उत्पन्न चिन्ता को दूर करता है।
(vi) विस्थापन - इस रक्षात्मक प्रक्रम में व्यक्ति अपने संवेग या प्रेरणा को किसी वस्तु विशेष या व्यक्ति से अचेतन रूप से हटाकर दूसरे व्यक्ति या वस्तु से संबंधित कर लेता है। जैसे पिता या माता द्वारा पिटाई होने पर बालक द्वारा अपने छोटे भाई-बहन को पीटना शुरू कर देता है।
उपर्युक्त दिए गए रक्षात्मक प्रक्रमों से व्यक्ति अपने आपको बाह्य एवं आन्तरिक तनावों से बचाता है और इसका प्रयोग सभी स्वस्थ व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।
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